Wednesday, June 21, 2006

कागज की कतरने

यादो के हर एक दामन से,
उन पलो के लम्हे चुराकर...

कागज की कतरनो पर, बयान किया है...
अपना प्यार बहुत है, तुम्हारे लिये
य़े अब सरेआम किया है...

1 comment:

रजनी भार्गव said...

रँगों को शब्द मिल जाएँ तो और क्या चाहिये,बहुत
अच्छा लगा तुम्हारा ब्लाग.
रजनी भार्गव