एक खामोश, चुप लडकी
जो सिर्फ आँखो से बोलती है,
उसके गालो के गड्डे बतियाते है
उसके होठो का तिल मुस्काता है
उसकी उगलियाँ खीचती है, हवा मे
तस्वीर, बातो की
पर, जब मै लोगो के साथ होती हूँ
मै बहुत बोलती हूँ...
पहाडी झरनो की तरह मेरी बाते
आसपास बह जाती है,
सिगरेट के छल्लो की तरह
हवा मे तैरती है..
लोग कहते है मै बहुत बातूनी हूँ..
पर लोगो को नही पता
मेरे अन्दर छिपी है
एक खामोश चुप लडकी...
जो सिर्फ आंखो से बोलती है...
कविता- प्रत्यक्षा सिन्हा
3 comments:
कविता और चित्र की बड़ी खूबसूरत जुगलबंदी है।
अपनी कविता देखकर बहुत अच्छा लगा.
ज़रा यहाँ भी देखें
बहुत सुन्दर चित्र है और कविता ने चार चांद लगा दिये।
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