Monday, June 19, 2006

द डिफरेंट स्ट्रोकस.. 01


तुम,
बस दूर खडे
एक मूक दर्शक की भाँति
आवाक देखते रहे...

और,
मुझे...उन चन्द
आडी-तिरछी लकीरो ने
असहाय बना दिया....

तुम!!!
चाहते तो रंगो की एक दीवार
खडी कर सकते थे.....

1 comment:

Anonymous said...

Bahut khoob likhtey ho. Different strokes padhte samaya tumhari kriti an-untitiled nazar aayi.
take care
neelam