Tuesday, August 07, 2007

मैने जीवित व्यक्तियो के पोट्रेट्स नही बनाये...

ज से लगभग 13-14 बरस बहले (सन-1993) मै इलाहाबाद संग्रहालय पहली बार गया था....पहली बार इतनी कलाकृतियाँ देखने को मिली...उन्ही मे से एक नेहरू का पोट्रेट भी था .. आयल कलर , आन बोर्ड , काफी बडा और जाने कौन सी टेक्नीक से बना...उस समय मुझे आयल कलर और टेक्नीक का इतना ज्ञान नही था...

पोट्रेट बनाने की प्रेरणा मुझे उसी चित्र से मिली....नेहरू जी के उस पोट्रेट ने मुझे 20-सो बार संग्रहालय आने पर मजबूर कर दिया... तब तक वीथिका संरक्षको द्वारा उस टेक्नीक के बारे मे भी परिचित हो चुका था..चित्र आयल कलर मे था और बिना कूची का इस्तेमाल किये हुए , नाइफ (एक चाकू जो स्पेशली पेन्टिग के लिये होता है) से बना था. ..बडा ही आश्चर्य और मन मे कौतुहल बना रहता.. क्या सालिड इफेक्ट्स था वाकई...करीब 2-3 बरस के मानसिक तनाव के बाद 1996 मे हमने एक दिन...स्केच बुक से एक पेज निकाला गाँधी के कई चित्र ड्रा किये...एक फाइनल हुआ... आयल कलर के बारे मे ज्यादा ज्ञान नही था....हाँ स्टूडेंट क्वालिटी का कैमेल वाटर कलर रखे थे ..उसी से एक्स्पेरीमेंट करना शुरू किया...वह भी सब्जी काट्ने वाले चाकू से...परिणाम चौकाने वाले थे..सस्ते वाटर कलर से एसा इफेक्ट देख तो आनन्द ही आ गया.

और इस तरह तैयार हुआ यह गाँधी का पोट्रेट....फिर 3-4 दिन बाद नेहरू का....और करीब एक साल बाद (1997) मे मेरा वह आखिरी पोट्रेट मेरी अपनी 5 बरस की बहन ‘रोशनी’ का था......


गाँधी-12 x 17, इंच, वाटर कलर, नाइफ, पेपर-1996

नेहरू -12 x17, इंच, वाटर कलर, नाइफ, पेपर-1996

रोशनी -12 x17, इंच, वाटर कलर, नाइफ, पेपर-1997

बस यही 3 सबूत है मेरे पास की मैने भी कभी पोट्रेट बनाये थे...और आज 10 बरस हो गये....


-विज

20 comments:

azdak said...

बुरे नहीं हैं..! बीच-बीच में अब भी हाथ आजमाते रहें..

Anonymous said...

गांधी जी का पोर्ट्रेट तो सच में बेहतरीन है . कोलकाता में मेरी एक मित्र जो विश्वभारती के सुप्रसिद्ध कलाभवन में प्रशिक्षित चित्रकार हैं,बहुत ही अच्छे पोर्ट्रेट बनाती हैं . मैंने उनसे हिंदी के कुछ लेखकों के पोर्ट्रेट बनवाए थे .

ghughutibasuti said...

आपने अब क्यों चित्र बनाना छोड़ दिया ? अब फिर से शुरू कर दें तो अच्छा होगा ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

अरे, इतने बढ़िया तो बने हैं. हमें तो तीनों ही बहुत पसंद आये.

Pratyaksha said...

बढिया !

Mohinder56 said...

Vijender ji bahut hi badhiya chitra hain.. aap ye kala jaari rakhen.

Srijan Shilpi said...

बेहतरीन पोर्टेट!

छोटी बहन की स्मृति इसमें धरोहर बन गई है!

महापुरुषों के पोर्टेट तो कलाकार बनाते ही रहे हैं।

Unknown said...

well, chitro se jyada mujhe mann ki saralta ne lubhaya....jiss andaz main aap ne apne man ki saralta ko vyakt kiya woh kahi bahut bheeter tak dil ko chuu gaya.....may god bless u .
Pankaj.

अनूप शुक्ल said...

आखिरी पोट्रेट देख कर बहुत अफ़सोस हुआ।

सुजाता said...

बहुत सुन्दर! अनगढता के दौर में इतना उम्दा काम है तो अब तो और निखरा होगा । कला की नियामत मिली हो तो व्यर्थ न जाने दें !

Neelima said...

बहुत अच्छे चित्र हैं !जीवंत !

Pramendra Pratap Singh said...

बेहतरीन एक से बड़ कर एक, सच में अन्तिम पोट्रेट्स बनने का मुझे भी दुख है। पर आपने उसे बना कर एक यादगार श्रद्धांजली अर्पित की है।

उन्मुक्त said...

सुन्दर पोट्रेट हैं

विजेंद्र एस विज said...

@प्रमोद जी.. आपकी टिप्पणी पाकर मन प्रसन्न हुआ..इस पर अमल करूगा.
@प्रियंकर जी..गांधी जी का पोर्ट्रेट आपको अच्छा लगा..आपकी चित्रकार मित्र के बारे मे जानकर खुशी हुई..लेखकों के पोर्ट्रेट हम भी देखना चाहेंगे.
@घुघूती बासूती...मैने चित्र बनाने नही छोडे है..मेरे अन्य चित्रो को यहाँ.. देखा जा सकता है
https://www.artwanted.com/vijen
https://www.vijendrasvij.com
हाँ कोशिश करूगा कि पोट्रेट्स फिर बनाऊँ.
धन्यवाद.
@समीर जी..धन्यवाद आपको सभी पसन्द आये.
@प्रत्यक्षा जी...शुक्रिया..:)
@मोहिन्दर जी..जरूर कला जारी रहेगी..धन्यवाद आपने पसन्द किये.
@सृजनशिल्पी जी..हाँ.. सही कहा आपने...
@पंकज जी..बहुत बहुत शुक्रिया.
@अनूप जी..हाँ..अब अफसोस ही बचे है.उस आखिरी पोट्रेट के लिये..
@सुजाता जी..आपने कला को परखा..जाना..सराहा..आभारी हूँ.
@नीलिमा जी..आपको चित्र जीवंत लगे..बहुत बहुत शुक्रिया.
@प्रमेन्द भाई..आपको सभी पोर्ट्रेटस पसन्द आये..अंन्तिम के लिये आपकी संवेदनाओ के लिये आभार.
@उन्मुक्त भाई..बहुत बहुत धन्यवाद.

-------- मेरे अजीज दोस्तो, आप सभी ने मेरे इन चित्रो को सराहा है..जिसके लिये मै आप सभी का बहुत आभारी हूँ..अरसे बाद इन चित्रो पर मिल रही सराहनाये सुखद अनुभूतियाँ दे रही है...
धन्यवाद के साथ.
-विज

Jitendra Chaudhary said...

यार! इत्ते अच्छे तो पोट्रेट बनाए है, फिर कहते हो कि कलर का ज्ञान नही था। उस जमाने मे इत्ता सधा हुआ हाथ था तो अब कैसा होगा? बहुत सुन्दर।

आजमाना पड़ेगा.....चिन्ता मत करो, अगली विजिट मे आपके स्टूडियो मे ही आ धमकने वाला हूँ।

Ashutosh said...

विज भाई, कला के बारे में बहुत तो नही जानते लेकिन एक द्रष्टा के निगाह से हमे तीनों पोर्टेट बहुत ही अच्छी लगी।

सादर,
आशु

सुनीता शानू said...

विज भाई इतनी सफ़ाई है आपके हाथों में वाह कला का अद्भुत नमूना पेश किया है एसा लगता है इश्वर ने आपको उन खूबीयों से नवाजा है जिनके आप हकदार हो...मेरी शुभ-कामनायें है सफ़लता सदैव आपके कदम चूमे।

सुनीता(शानू)

कुमार मुकुल said...

Roshni ki tasvir bahut jivant banai aapne,aapka parichay accha laga

कुमार मुकुल said...

Roshni ki tasvir jivant hai,baki dono bhi acchi lagi

सुशील छौक्कर said...

पेटिग्स देखना अच्छा लगता है ना जाने क्यूँ, पर कभी ब्रश पकड़ना नही आया। पता है छठी क्लास से लेकर शायद आठँवी क्लास मैं दोस्तों की वजह से ही कला विषय में पास होता था। एक साडी का डिजाईन ही मै बनाता था बाकी जानवर या कुछ और जो पेपर में आता था मेरे दोस्त ही बनाते थे।

खैर तीनों पोर्ट्रेट पसंद आये। एक थीम पर तो एक पेटिग बनवानी ही है आपसे।