अधिक नहीं कुछ चाहिए,
अधिक न मन ललचाय,
साईं इतना दीजिए,
साइबर में न समाय।
भक्त की ये अरदास सुनकर भगवान घबरा गए। क्या! भक्त इतना चाहता है जो साइबर में न समाए! अरे भइया! इतना तो अपने पास भी नहीं है। अपन को मृत्युलोक का डेटा लेना होता है तो साइबर स्पेस में सर्च मारनी पड़ती है। यमराज का सारा काम आजकल इंटरनेट पर चल रहा है। पूरे ब्रह्मांड के इतने ग्रह-नक्षत्र, उनमें इतने सारे जीवधारी! किसकी जन्म की किसकी मृत्यु की बारी? सब नेट से ही तो ज्ञात होता है। डब्ल्यू-डब्ल्यू-डब्ल्यू यानी वर्ल्ड वाइड वेब अब बी-बी-बी हो गया है। बी-बी-बी अर्थात् बियोंड ब्रह्मांड बेस। धरती पर हिन्दी का एक सिरफिरा कवि इसको ‘जगत जोड़ता जाला’ बोलता है। कहता है--
‘साइबर नेट बने हुए, इस जी के जंजाल,
अपने ऊपर बिछा है, जगत जोड़ता जाल॥’
बहरहाल, भगवान बड़बड़ा रहे हैं— ‘बताइए! भक्त ब्रह्मांड से अधिक चाहता है। धरती पर ‘साइबर स्पेस’ कहते हैं, पर हम भगवानों के बीच इसे ‘स्पेस साइबर’ कहा जाता है। पता नहीं किस साइबर की बात कर रहा है भक्त’। भगवान व्यथित हैं।
जिस भक्त ने भगवान को कष्ट दिया वह इस समय एक अस्पताल में लगभग मृत्यु शैया पर है। उसकी आयु एक सौ छ: वर्ष हो चुकी है फिर भी जीने की इच्छा कम नहीं हुई। कहने को ही भक्त है वह। दरअसल, वह स्वयं ही भगवान बनने की फिराक में है। उसका नाम है-- श्री श्री श्री एक हज़ार आठ स्वामी सत्यानंद सरस्वती, आई.डी.- वी.आई.पी. 987654321 कैटेगरी- स्प्रीचू ओरिएंटल साइबर एजीरियल योगा।
स्वामी इंवैंटीलेटर पर हैं। उनकी इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना नाड़ियों से विद्युतीय माइक्रो चाक्षुष नौन तार कंडक्टर्स जुड़े हैं। केवल नर्सें और डॉक्टर वर्चुअल स्क्रीन पर मरीज़ का जीवन-ग्राफ देख सकते हैं। ये है सन 2057, फरवरी का महीना, स्वामी सत्यानंद सरस्वती इंवैंटीलेटर पर हो रहे हैं पसीना-पसीना।
अस्पताल के बाहर उनके शिष्यों की फौज थी। सब दुःखी थे, केवल एक की ही मौज थी। वह था उनका शिष्य नकारू। नकारू यह सोच-सोच कर मगन था कि वी.आई.पी. स्वामी मरने वाले हैं। वही उनके साइबर डेटा और साइबर पीठ का उत्तराधिकारी होगा। पिछले लगभग एक महीने से वह स्वामी की मृत्यु की कामना कर रहा था। दस दिन से तो उसने उन्हें उम्रवर्धिनी औषधि व्यग्रआग्रा देना भी बंद कर दिया था। स्वामी को इस तथ्य की भनक नहीं लग पाई। किंतु सिस्टम के साथ ज़्यादा छेड़छाड़ करने के कारण नकारू की स्नायु-दिमागी ड्राइव में कोई वायरस लग गया, जो ‘स’ ध्वनि को ‘ह’ में बदल देता था। अगर वह दूसरों के सामने स्वामी का नाम लेने का प्रयास करता था तो मुंह से निकलता था- ‘ह्वामी हत्यानंद हहह्वती’। सकारू जो कि स्वामी का दूसरा शिष्य था बिगड़ गया- ‘लज्जा नहीं आती, श्री श्री श्री का नाम ऐसे लिया जाता है’?
नकारू लज्जित तो नहीं हुआ, परेशान सा होकर कहने लगा- ‘हकारू! हायद कोई वायरह लग गया है, ह्री ह्री ह्री का जैहे ही नाम लेता हूं हत्यानंद हहह्वती ही निकलता है’। सकारू समझ गया। उसे अपना नाम ‘हकारू’ भी अच्छा लग रहा था, क्योंकि अन्दर ही अन्दर वह जानता था कि स्वामी की मृत्यु के बाद सारे हक तो उसी को मिलने हैं। जिसे हक मिले वो हकारू। वह नकारू की तरह नकारात्मक नहीं था। उसने कभी स्वामी की मृत्यु की कामना नहीं की। वह हृदय से साइबर-योगा-पीठ के हित की कामना करता था। माना कि चिकित्सा विज्ञान ने मनुष्य की आयु बढ़ा दी है पर अमर तो नहीं किया। वह सचमुच चाहता था कि श्री श्री श्री अभी धरती से विदा न लें। एजीरियल साइबर योगा विज्ञान के क्षेत्र में उनका भारी योगदान था। उन्होंने ब्रिटेन, अमरीका, यूरोप, जापान और अफ्रीका के बेरोज़गार नौजवानों को आउटसोर्सिंग में जॉब देकर मनुष्य की उम्र पांच सौ साल करने वाले प्रोजैक्ट पर काफी श्रम किया था। भारत के नौजवानों को ज़्यादा धन देना पड़ता था। विकास-अवरुद्ध पश्चिमी देशों के नौजवान सस्ते पड़ते थे। उम्र-वर्धन तकनीक पर शोध करते-करते वे स्वयं पर ही कोई ग़लत प्रयोग कर बैठे। सुषुम्नोत्तर तरंग-प्रवाह में विकारी बाधा आ गई। श्वास लगभग चली गई, मूर्छित हो गए। नकारू और सकारू ने उन्हें साइबरोलो अस्पताल के इंवेंटीलेटर के हवाले कर दिया। अब अंतिम सांसें गिन रहे हैं।
श्री श्री श्री एक हज़ार आठ स्वामी सत्यानंद सरस्वती, आई.डी.- वी.आई.पी. 987654321 कैटेगरी-- स्प्रीचू ओरिएंटल साइबर एजीरियल योगा इंवैंटीलेटर पर अर्धमूर्छित अवस्था में लेटे-लेटे अंतिम सांसें नहीं गिन रहे थे, वे गिन रहे थे उन महिलाओं की संख्या जो उनके संसर्ग में आईं। वे चाहते थे उनके दिमाग का स्त्री-डाटा करप्ट हो जाए। वे नहीं चाहते थे कि मरने के बाद उनके दिमाग की हार्ड-ड्राइव उनके मठ में जाए और शिष्य हतप्रभ रह जाएं। जीवन भर भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले अविवाहित सत्यानंद ने सत्य में किस-किस प्रकार के आनंद लिए थे, सब पता चल जाएगा उनके चेलों और चपाटों को।
तपस्विनी मेधा से उनके क्या रिश्ते थे। अमरीका से आई साध्वी जैनेथ, कज़ाकिस्तान की क्युदीला, जापान की फुईकुई... और... । अब उनके चेलों को यह भी पता लग जाएगा कि मठ के एक अरब हज़ार रुपए उन्होंने किस प्रकार होनोलुलू के हिडन-बैंक में जमा कराए। अरे! वे कोड नम्बर अब कैसे मिटाएं। और ये जो व्यर्थ का उत्तराधिकारी बना हुआ है नकारू, इसको सब कोड पता चल जाएंगे। किसी तरह मेरे दिमाग की हार्ड ड्राइव खराब होनी चाहिए, करप्ट होनी चाहिए। हाय! इंवैंटीलेटर से कब हटाया जाएगा मुझे। कम्बख़्त इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी। साइबर स्पेस की डैमोक्रेसी मेरी ऐसी की तैसी करा देगी।
कमरे में डॉक्टर आया। उसके हाथ में साइबर मोबाइल था। स्क्रीन के उपर हाथ फिरा कर वो उंगलियां उपर नीचे करता था, विंडो बदल जाती थी। कहने लगा— ‘स्वामी! आई थिंक आप मुझे सुन सकते हैं। आई कैन रीड यॉर माइंड, माइक्रो फैमिनन रेज़ बता रही हैं कि आप महिलाओं के बारे में सोच रहे हैं। ये सन दो हज़ार सत्तावन है, भारतीय मुक्ति संग्राम को दो सौ साल हो चुके हैं। इस साल भी साइबर स्पेस में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी काम किया है। धरती के सारे मनुष्यों का जन्म-मरण का डेटा बेस और डेटा विश्लेषण तो पिछले साल ही पूरा हो गया था, आज डी.एन.ए एंट्रीज़ भी पूरी हो गई हैं। क्या आपको मालूम है कि इस धरती पर आपकी चार संतानें हैं....’।
इस से पहले कि डॉक्टर आगे कुछ कहता, स्वामी के शरीर में ज़ोर का कम्पन हुआ। इंवैटीलेटर की सुषुम्ना पाइप से धुआं निकलने लगा। स्वामी के दाँत बजने लगे। डॉक्टर खुश हो गया। ये शॉक ट्रीटमैंट नहीं अशोक ट्रीटमैंट था—‘पता नहीं आपको खुशी हुई या गम। मे बी कभी खुशी कभी गम। बट यू कांट इरेज़ दा फैक्ट। साइबर स्पेस में अब सब को पता चल जाएगा कि अनमैरिड स्वामी के उत्तराधिकार का मामला सुलझ गया है। स्वामी आपका सारा डेटा, पा जाएगा आपका बेटा और तीनों बेटियां। नकारू और सकारू बेकार लड़ रहे हैं।
इस आलेख में एक हज़ार एक सौ आठ शब्द पूरे हो चुके हैं। बोलो- ह्वामी हत्यानंद हहह्वती की जय!
द्वारा: डॉ. अशोक चक्रधर की कलम से...
http://www.chakradhar.com/
8 comments:
बहुत अच्छा आलेख पढवाने के लिये धन्यवाद और बधाई
आपकी परिकल्पना, शब्द चयन, अभिव्यक्ति, शैली, प्रभावशीलता - सब वस्तुतः लाजबाब हैं ।
बहुत आभार विजेन्द्र, अशोक चक्रधर जी को पढ़वाने के लिये.
दूर की कौडी लाये हैं अशोक चक्रधर जी.
सच्ची बहु......त दूर की. है ना ?
अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम
http://bhaarateeyam.blogspot.com
क्या बात है भैया अब ले ही आये हो तो लाते रहना
माना पास से
अरूण
लिजिये, हमने भी आपको टैग कर लिया. :) फुरसतिया जी वाला टैग ईमेज इस्तेमाल कर लूँ क्या??
अच्छी सामग्री प्रस्तुत की है आपने .
दोस्तो..आप सभी को अशोक जी का यह लेख पसन्द आया इसके लिये शुक्रिया और आभार..प्रस्तुती और भी जारी रहेगी..
धन्यवाद.
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