अलग अलग भाषाएँ, अलग अलग अलग प्रान्त , देश के विभिन्न भोगोलिक कोण, लेकिन कृत्या ने हमें ऐसा जोड़ा कि मानो हम एक मुहल्ले के रहने वाले हैं.शब्द, चित्र और फिल्म एक साथ चले। शब्दों और चित्रों की जुगलबंदी हुई..शब्दों ने चित्रों की रचना की और चित्रों ने शब्दों की। कृत्या ने एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर देशीय व अंतर्देशीय कवियों, चित्रकारों और फिल्मकारों को पेश किया जिसका श्रेय डॉ रतिसक्सेना (Managing Trustee Kritya & Editor www.kritya.in) और उनकी पूरी टीम को जाता है॥
वह कहती हैं...
कविता सवाल छोड़ती है, जमीन से जुड़ाव आजीवन कारावस तो नहीं, कहीं इसीलिए तो कबीर बाबा कह बैठे......
रहना नही देश बिराना...
इस बार फेस्टिवल की थीम थी "Exile, Trauma & Survival" जिस पर कविता हुई, पेंटिंग्स बनी, और फ़िल्में दिखाई गयीं..कृत्या विस्थापन के विभिन्न आयामों से गुजर चुकी है, विभिन्न बिन्दुओं को तलाश रही है, और एक अन्तिम सहमती की ओर रास्ता बना रही है। इस सफर में कविता फिल्मों ने साथ दिया, साधो की उपस्थिति और ओदवे की भारतीय कवियों पर बनाई गई फिल्में कविता के इस सफर को दृष्टि देती रहीं। भारतीय कवियों की आवाज को ओदवे विश्व पटल पर ले कर घूमीं.
कुछ प्रमुख विदेशी कवियों में पीटर वाग, हनाने आद, ओदवे , कोस्टा रिका के ओस्वालडो सौमा, सिंगोनिया सिंगोने, तेनसिंग, नोर्वे के ब्रेयान, इजराइल की दिति रोनेन इरान के बहजाद जरीनपुर, अर्जेटाइना की एलिसा पार्टनोई, एनरिक मोया और भारत से प्रयाग शुक्ल, अग्निशेखर, शैलेय, अलका त्यागी, अमित कल्ला, युवा कवि निशांत, दुष्यंत आदि ने अपनी अपनी रचनाएँ पेश कीं..
अर्जेटाइना की एलिसा पार्टनोई ..जिन्होनें निष्कासन के दर्द को व्यक्तिगत रूप में झेला था ने काव्य पाठ का आरम्भ किया , यह कहते हुए-
उन्होने मेरे पाँवों के नीचे से
मेरे देश को खींच लिया
निष्कासन- यह नाम देकर
अचानक इस तरह
मेरे पैरों के नीचे की जमीन खींच ली
मेरे चारों ओर अब दूरियाँ ही दूरियाँ...
एलिसा पार्टनोई इन लाइनों को मैंने प्रांजल आर्ट्स के द्वारा आयोजित आर्ट वर्कशॉप में अपनी पेंटिंग का सब्जेक्ट चुना..
प्रांजल आर्ट्स के सर्वजीत सिंह एवं उनकी पत्नी नीरू सिंह जो स्वयं एक कुशल चित्रकार हैं ने वर्कशॉप को एक आकर दिया..
उनके साथ उनकी टीम में हिस्सा लेने वाले प्रमुख चित्रकारों में से ग्वालियर के मुस्ताक खान चौधरी, नीरूसिंह, जयपुर से अमित कल्ला, बंगलोर से शरद, मैसूर से विश्वनाथन, जम्मू कश्मीर से वागे विलाल, इलाहबाद से विद्यासागर, आस्ट्रेलिया से डैनियल, दिल्ली से स्वप्न भंडारी, विशाल भुवानिया और में विजेंद्र एस विज थे...सभी ने अपनी पसंदीदा कवितायेँ थीम को चुना और पेंटिंग्स बनायीं.. यह सभी चित्र जल्द ही कृत्या और प्रांजल आर्ट्स की आर्ट गैलरी में देखे जा सकेंगे...
हर शाम 7:00pm to 9:00 pm पोयट्री पर फिल्म्स दिखायीं गयीं.. प्रमुख फिल्मों में :
1. "The poet and the world"by Odvieg Klyve & Kari Klyve Gulbrandsen, Bjorn from Norway
2. "Labyrinth:self, nature and dreams"
by Akash Gaur, India
3. "At the Midnight hour" by Samit Das, India
4. "Breathing without Air" by Kapilash Bhuvan, India
और दूसरे दिन की शाम यानी 4th Feb, साधो के नाम रही साधो टीम से जीतेन्द्र रामप्रकाश और पारिजातकौल हिन्दी और अंग्रेजी की 20 फ़िल्में पोयट्री पर दिखाई...
हम कविता के साथ बह रहे थे सब के हाथों में पतवार थी...कलम की, कूची की और कैमरे की..और कविता ले जा रही है हमे अपने पंखो पर पर बैठा निष्काशन से दूर...बहुत दूर.....
4 comments:
जोरदार आयोजन और रिपोर्ट -मगर मेरी एक विनम्र आपत्ति आयोजन के नामकरण को लेकर है -यहाँ कृत्या किस अर्थबोध को लेकर है -भारतीय मिथकों में कृत्या एक राक्षसी है .क्या अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों के नामकरण हम किसी ख़ास सोच के तहत करते हैं ?
भाई, आप मिथकों की बाव भुमिका से ऊपर उठे और अथर्ववेद में जाकर देखें,
वहाँ कृत्या शब्द शक्ति है, यानी कि वाणी की मिसाइल,
मिथक से पहले का इतिहास बहुत लम्बा है भाई, गहरी जाँच पड़ताल के बाद ही कुछ समझा जा सकता है,
बढ़िआ रिपोर्टिंग...आभार!
अच्छा है जी. जानकारी के लिए धन्यवाद.
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