बादल को घिरते देखा है।
अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहीन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादलों को घिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहीन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादलों को घिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
- नागार्जुन
ग्राफिक्स-विज
6 comments:
बेहद अच्छा लगा यह कविता पोस्टर .
बहुत सुन्दर ग्राफिक्स-बधाई. कविता तो खैर नागार्जुन जी की क्या कहने!!
Bahot Badhiya chitra hai Vij -- Sada ki bhanti --
Badhaai --
sa sneh,
Lavanya
बहुत सही । पता नहीं क्यों बारिश के इन दिनों में ये कविता बहुत याद आती है अच्छा हुआ जो प्रस्तुत की
Vij
Har badhayee ke haqdaar ho. Sunder blog par adbhut parastuti padi. Aur to aur tumhari har tasveer bol padti hai. yahi ek ache kalakar ki rachna ka moolya hai.
Mubarak ho
ssneh
Devi Nangrani
Vij
meri mail Pahunchi ya nahin. Badhyi ho.
Devi
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