Monday, August 13, 2007

नागार्जुन-साहित्य पर एक चित्र

बादल को घिरते देखा है।


अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहीन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादलों को घिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

- नागार्जुन

ग्राफिक्स-विज

6 comments:

Anonymous said...

बेहद अच्छा लगा यह कविता पोस्टर .

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर ग्राफिक्स-बधाई. कविता तो खैर नागार्जुन जी की क्या कहने!!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Bahot Badhiya chitra hai Vij -- Sada ki bhanti --
Badhaai --
sa sneh,
Lavanya

Yunus Khan said...

बहुत सही । पता नहीं क्‍यों बारिश के इन दिनों में ये कविता बहुत याद आती है अच्‍छा हुआ जो प्रस्‍तुत की

Devi Nangrani said...

Vij
Har badhayee ke haqdaar ho. Sunder blog par adbhut parastuti padi. Aur to aur tumhari har tasveer bol padti hai. yahi ek ache kalakar ki rachna ka moolya hai.


Mubarak ho

ssneh

Devi Nangrani

Devi Nangrani said...

Vij

meri mail Pahunchi ya nahin. Badhyi ho.
Devi