Saturday, June 09, 2007

मै बंजारा, वक्त के कितने शहरो से गुजरा हूँ

मै बंजारा,
वक्त के कितने शहरो से गुजरा हूँ
लेकिन,
वक्त के इक शहर से जाते जाते
मुडके देख रहा हूँ
सोच रहा हूँ
तुमसे मेरा ये नाता भी टूट रहा है
तुमने मुझको छोडा था जिस शहर मे आके
वक्त का अब वो शहर भी मुझसे छू रहा है..


जावेद अख्तर साहेब की यह नज्म मुझे बेहद अच्छी लगती है..बडा सुकूँन देती है आज भी..जब हम अपने उन शहरो को याद करते है..जिन्हे पीछे छोड आये..मेरे खयाल से मै ही नही.. मेरे जैसे कितने ही लोग होंगे जिन्होने शहर दर शहर बद्ले होगे..और हर शहर ने उन्हे कुछ न कुछ जरूर दिया होगा..उन्हे यह नज्म अपने ही दिल की एक जबान जरूर लगती होगी.. साढे छ: बरस पहले मै जब इलाहाबाद छोड दिल्ली आया था..तब उस्ताद शायरो, कवियो की शायरी और कविताओ के साथ जुगलबन्दी किया करता था..यह चित्र भी मेरी जुगलबन्दी का एक हिस्सा है..
महज छ: बरस पुराना...

-विज
http://www.vijendrasvij.com

2 comments:

सुनीता शानू said...

विजेन्द्र भाई नज्म तो सुंदर है ही मगर ये चित्र बेहद खूबसूरत है...
सुनीता(शानू)

अभिनव said...

चित्र पसंद आया, कविता भी।