अराध्य,
मान कर ही तो उन्होने भी
की होगी पूजा उसकी...
शायद,
यह मानकर की थाम लेगा वह,
यह तेज़ बाढ सी
जो पुरातन से चली आ रही है
यहाँ,शोषित होने...
कभी,
खिली तो एक अध-खिली
और,
कभी..भिखारन
तो एक पुजारन बनकर....
वह,
दूर बैठा बस रास रचाता रहा
बासुरी की धुन मे मगन,
गोपियो के इर्द-गिर्द लिपटा...
नहीँ,रोक सका है
वह देवकी नन्दन भी
उन विधवाओ को आने से
वृन्दावन की
इन तंग गलियो मे...
मान कर ही तो उन्होने भी
की होगी पूजा उसकी...
शायद,
यह मानकर की थाम लेगा वह,
यह तेज़ बाढ सी
जो पुरातन से चली आ रही है
यहाँ,शोषित होने...
कभी,
खिली तो एक अध-खिली
और,
कभी..भिखारन
तो एक पुजारन बनकर....
वह,
दूर बैठा बस रास रचाता रहा
बासुरी की धुन मे मगन,
गोपियो के इर्द-गिर्द लिपटा...
नहीँ,रोक सका है
वह देवकी नन्दन भी
उन विधवाओ को आने से
वृन्दावन की
इन तंग गलियो मे...
6 comments:
बहुत सुंदर। कितने गहरे जाकर लिखा है!
जितनी उत्कृष्ट कविता उतनी ही शानदार पेंटिंग . बस एक जगह वर्तनी की अशुद्धि खटक रही है .'शोषित' शब्द जल्दबाज़ी में 'शोसित' लिखा गया है . सुंदर जगह पर थोड़ी सी कमी भी खटकती है.
बहुत सुंदर ,कविता भी और पेंटिंग भी । ये तो एक श्रृंखला बन सकती है ।
विजेंद्र जी,
हम कहेंगे इतना ही :-
किस किस को रोकेगा वो,
खुद ही ड़ूबा मुरली तान में जो
खिंची चली आती है,
राधा बन कभी रुक्म्णी
मीरा दीवानी कभी गोपी ड़ोर सी,
मात्र राग नहीं बोला वो,
बोला गीता संवाद भी जो,
मन की पांखे खोल सखी रे
वृंदावन की कुंज गली से,
गुंजित हो टंकित हुआ जब
कुरुक्षेत्र की रण भूमि तक
बन उपजा गीता ग्यान भी तब.!!!!
-विजेन्द्र जी आप के चित्र और कविताओं का संगम अनोखा है,........और क्या कहूं बस आपकी तूलिका से इंतज़ार है, एक एसे ख्याल का -कि कृष्ण पॄष्ठभूमि मे हैं, मधुबन मे राधा बैठी हैं, उनके सामनें नेह के विस्तृत अर्थों को खोजती, और सामने मुख्य भाग में सुदर्शन चक्र सहित अर्जुन बैठे हैं, नतमस्तक गीता ग्यान लेते हुए, यानी कृष्ण के वो दो रूप जो प्रेम और कर्म को साथ ले कर चले....पूरा भरोसा है, की “द विडोज आफ वृन्दावन” जैसा विचारक चित्र बना पाने वाला आप जैसा कर्मठ कलाकार कभी ना कभी ये चित्र भी उजागर करेगा...!
-सादर
श्रीमति रेणू आहूजा.
मेरे जवाब.
प्रेमलता जी...शुक्रिया आपको कविता के भाव अछ्छे लगे..लिखना सफल रहा..
प्रियंकर जी..सबसे पहले तो धन्यवाद कहना चाहूंगा आपको शब्द और चित्र दोनोअछ्छे लगे..कविता पर जो सार्थक प्रतिक्रिया जो आपने दी है कि “सुंदर जगह पर थोड़ी सी कमी भी खटकती है.” उससे मन को आनन्द हो रहा है कि वाकई कविता के एक एक शब्द को बडी तन्मयता से पढा है आपने..लिखते समय शायद जल्दबाजी मे ध्यान नही रहा..और 'शोषित' शब्द 'शोसित' हो गया..अपनी इस गलती को मैने सुधार लिया है.जिसका सारा श्रेय आपको समर्पित करते हुए पुन: धन्यवाद दे रहा हूँ.
प्रत्यक्षा जी...कविता और पेंटिंग आपको सुन्दर लगी शुक्रिया.. श्रृंखला बन सकती है.. आपकी शुरुवात का इंतज़ार रहेगा..शब्द आप रचिये और चित्र मै.. तभी तो होगी जुगलबन्दी...
श्रीमति रेणू आहूजा जी... कविता के आगे की लिखी आपकी कडी सुन्दर लगी..एक द्र्श्य आंखो के सामने उभर रहा है...और उसके आगे का यथार्थ “कृष्ण के वो दो रूप जो प्रेम और कर्म” को साथ लेकर जो आपने सोचा वह अदभुत होगा.. एक कम्पलीट चित्र सामने आ रहा..आपने मेरी तूलिका को इस लायक समझा उसके लिये आभारी हूँ..उम्मीद है कि
रंग सकूंगा..
धन्यवाद के साथ..
-विज
Keep up the good work :)
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