हाँलाकि,
नही लिखना चाहिये
कुछ भी अब
उसके बारे मे...
पूरे
बीस पेज पलटने होंगे
उस दसवेँ पेज मे
पहुँचने के लिये...
फिर,
एक प्रश्न चिन्ह लगेगा
और,
तब तुम भी सवाल करोगी
मुझसे...
कि,
कहाँ गये बीच के
सत्रह, अट्ठारह पेज...
अब तो एक धुन्धली
आउट लाइन बन चुकी है
वह,
मेरे कैंनवस की...
आज अरसे के बाद
इन लकीरो को
गाढा करने की कोशिस
करते वक्त
मेरे हाँथ काँप रहे थे...
3 comments:
hi...good to see a person who has the courage to read ek chitra sukh and actually call it a favourite book...i start it every 3 months and give up as i can't handle how it affects me ...
and gunahon ka devta hmmmmm,
loved your poem...hope you write regularly
badhi acchi kavita he vij, tumahari chitra kala si, aise hi likhate raho
Rati
वाह विज साहब पेज पलटने की खवाहिश बढती ज रही है इसे पढ कर..
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