Thursday, December 29, 2011
Saturday, December 24, 2011
मेरे स्टूडियो की छत पर
मेरे
स्टूडियो की छत पर
एक कोने में, तार से
बल्ब लटका है..
वहां नीचे,
जहाँ मैं बैठता हूँ
पढता रहता हूँ,
पेंट करता हूँ...
एक छतरी नुमा शेड भी है,
वहां उसके ऊपर,
जिससे इसकी रोशनी बेमतलब नहीं फैलती..
यह मेरे मुताबिक जलता रहता,
बुझता रहता है..
काफी दिनों से
अब मैं वहां नहीं बैठता हूँ..
शेड पर 'डस्ट' काफी जम गयी है..
रोशनी मध्यम हो गयी है,
और पीली पड़ गयी है
एक कोने में, तार से
बल्ब लटका है..
वहां नीचे,
जहाँ मैं बैठता हूँ
पढता रहता हूँ,
पेंट करता हूँ...
एक छतरी नुमा शेड भी है,
वहां उसके ऊपर,
जिससे इसकी रोशनी बेमतलब नहीं फैलती..
यह मेरे मुताबिक जलता रहता,
बुझता रहता है..
काफी दिनों से
अब मैं वहां नहीं बैठता हूँ..
शेड पर 'डस्ट' काफी जम गयी है..
रोशनी मध्यम हो गयी है,
और पीली पड़ गयी है
चन्द अशहार, नजर आते हैं वहां..
सोचता हूँ...
साफ़ कर दूँ..
या बदल दूँ इसको..
आँखों में काफी जोर पड़ता है..
बस, इसी उधेड़बुन में रहता हूँ..
आजकल,
'शेखू' मेरा बच्चा
इसे , रोज जलाता है, बुझाता है..
इससे खेलता है, मुस्कुराता है
हँसता रहता है...
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