Thursday, December 31, 2009

2010 | नव वर्ष मंगलमय हो !


सभी मित्रों को नव वर्ष की बहुत सी मंगल कामनायें..
2010, आपके लिए खुशियों से भरा हो..

Monday, September 21, 2009

Tuesday, August 25, 2009

राष्ट्रीय युवा समागम 2009

‘मीमांसा एक पहल’ के तत्वावधान में
राष्ट्रीय युवा समागम 2009
3-4 अक्टूबर, दरभंगा, बिहार

संक्षिप्त विवरण :

उद्धाटन : 3 अक्टूबर, 2009
प्रात: 10.00 बजे

समापन : 4 अक्टूबर, 2009
रात्रि 10.00 बजे

स्थान : बहेड़ा हाईस्कूल मैदान
दरभंगा (बिहार)

पंजीकरण की अंतिम तिथि : 30 अगस्त, 2009

समागम के प्रतिनिधि :

आई.टी., इंजीनियरिंग, मेडिकल, बिजनेस मैनेजमेंट, समाजशास्त्र,
जनसंचार साहित्य, कला, संस्कृति, आदि से जुड़े
विभिन्न संस्थाओं एवं संस्थानों के देश भर के पांच सौ से अधिक युवा प्रतिनिधि

संपर्क : विजय कुमार मिश्र
5825/7, न्यू चन्द्रावल, दिल्ली-110007
मो. : 9868463946
ईमेल-vijayvijaymishra@gmail.co
NATIONAL YOUTH CONCLAVE 2009
(3-4th October, Darbhanga, Bihar)

log on : www.meemansa.org

Saturday, August 22, 2009

हॉस द्स वेंएस - मधुशाला

म्बे अरसे बाद क्लौदिया की किताब पब्लिश हो ही गयी.. २ साल पहले उन्होंने मधुशाला की रूबाइयों का अनुवाद अपनी जर्मन भाषा में लिखा और हर रूबाइयों पर चित्र भी बनाये हिंदी के प्रति उनका यह प्रेम अनूठा है वह हिंदी सीखती हैं और पढ़ती भी हैं.. बच्चन साहब की मधुशाला उन्होंने खुद पढी। उनका जिक्र मैं पहले भी यहाँ कर चुका हूँ..वह एचिंग की मास्टर (कुशल चित्रकार) हैं.. साल पहले हम एक अमेरिकन साईट आर्ट वांटेड डॉटकाम से संपर्क में आये.. फिर तो बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ वोह बेहद रोचक था..

उन्होंने काफी जानकारी हिंदी के महाकवि डा. हरिवंश राय बच्चन के बारे में ली..और अपनी इच्छा जाहिर की की वह मधुशाला का जर्मनमें अनुवाद करेंगी और एचिंग बनायेंगी.. उनका यह प्रोजेक्ट पूरे वर्ष तक
ला.. वह लगातार लिखती रहीं..चित्र बनातीं रहीं.. यहाँ भारत में भी पब्लिसर तलासती रहीं.. कई संस्थाओं में भी बात चलती रही..अमिताभ जी से भी संपर्क किया.. और अंततः अब उनकी उनके किताब हाथ में है.. जिसे " Draupadi-publisher" ने छापी है.. किताब का कवर यहाँ देखा जा सकता है...मेरी प्रति भी एक सुरक्षित है.. जैसे ही मेरे हाथ आयेगी मैं कुछ अंश इलस्ट्रेशनस यहाँ जरूर पोस्ट करूंगा.. उनकी लिखी एक छोटी सी -मेल भी यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ.. ताकी उनकी इस उपलब्धी और खुशी को हम सेलीब्रेट कर सकें..
और अधिक प्रति हाँथ में आने पर..


Dear Sangeeta, dear Vijendra,
long time, that we didnt hear anything.... My hope is that you are all fine and enjoy your life, your family, with your lovely boy.... It will be a lot of work, but also an immense lot of joy.. :-))
In the next two weeks, I will have my book "Haus des Weins - Madhushala" in my hands, it had been realized by Draupadi-publisher and will be printed now... after two years of work in getting in contact with Amitabh Bachchan, translating, doing my artworks for illustration, searching for a publisher and being sucessfully in it now it will released, offical date of release is 15th september.
Amitabh grants me a nice foreword and will help me by giving a statement, when I shall inform the media in India. I create a press release for it...
So far to my project, now to my promise: you also will be one of the first people, that will get the book. Please tell me your actual adress, so I can send the book... it will be a pleasure to me, cause you both are one of those poeple, that helped me to realize my project.
For today send you my very best wishes and blessings
love
Claudia

erscheint am 15. September: Indische Poesie aus dem Hindi ins Deutsche übersetzt:

Haus
des Weins
Madhushala

mit einem Vorwort von

Amitabh Bachchan

bilingual,
mehrere Radierungen,
einführende Erklärung,
100 Seiten, 8 Illustrationen

im DRAUPADI-Verlag, Heidelberg

www.draupadi-verlag.de
http://www.claudia-huefner.de

Dr. Harivansh Rai Bachchan

(1907-2003)

Vater des bekannten
indischen Schauspielers
Amitabh Bachchan
schuf 1935 ein 135 Verse
langes Gedicht über das Leben,
die Menschen,
das Schicksal,
Politik und Religion
und den Tod,
das an seiner Aktualität
bis zum heutigen Tag
nichts verloren hat...

Monday, July 06, 2009

तयेब मेहता को समर्पित कृति


'मदर'
डेडीकेटेड टू तयेब मेहता
12x18 इंच , इंक पेन, आयल पेस्टल कलर, आन पेपर
जून-२००९,

Saturday, July 04, 2009

चित्रकार - तयेब मेहता



येब मेहता
2 जुलाई , 2009, को मुम्बई के एक अस्पताल में दिल के दौरे से उनका निधन हो गया..वह 84 वर्ष के थे.. वह २ साल से बीमार चल रहे थे उन्होंने अपना काफी समय मुम्बई में व्यतीत किया.. 25 जुलाई सन 1925 में गुजरात के कपड़वंज , खेडा डिस्ट्रिक्ट में जन्मे तयेब मेहता सुविख्यात भारतीय चित्रकार थे ..उनकी 'Bombay Progressive Artist Group' सुजा, रजा और हुसैन के साथ सक्रिय भागीदारी थी और भारतीय आधुनिकता वाद कलाकारों की प्रथम पीढी के सदस्य थे भारतीय कलाबजार में उनकी एक पेंटिंग 'Triptych Celebration' क्रिस्टी की नीलामी में सबसे महँगी (1.5 करोड़ रु ($ 317,500) बिकी.. 2007 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। उनकी कुछ कृतियाँ यहाँ देखी जा सकती हैं..






Friday, March 06, 2009

कहाँ गए आखिर ..बीच के.. उनतीस-तीस पेज...

रसे के बाद आज अचानक ही कुछ ख़याल जेहन में उभर आये.. बड़े ही चटक हैं.. कहते हैं यादें अक्सर धुंधली हो जाती हैं..लेकिन यह तो दिनोदिन और चटक होती जा रहीं हैं... हम बदल गएँ हैं.. लेकिन भाषा वही है और लोग भी.. बस वक्त काफी आगे चला गया है महज ३० बरस आगे.... इन यादों को शब्द देने की कोशिश भर की है.. लय तो उतनी नहीं आ पायी है.. हाँ कविता समझ सकते हैं या फिर ख़याल... या कहानी गढी जा सकती है…

वहां के पेडों में,
सावन के झूले नहीं पड़ते..
सब सूख गए हैं..
अब कोई लम्बी पेंगे नहीं भरता..

वहां की औरतें
बारिश के दिनों में बरसाती ओढे हुए
धान लगाते समय अब कोरस नहीं गातीं...
सब कुछ बदल गया है..

किसी के भी चौपाल पर
शाम होते ही आल्हा के सुर नहीं उठते...
और,
ना ही किसी भी मौके में मोछई के..
एलपी की वह धुन..."ये गोटेदार लहंगा निकलूं जब डाल के..."

भिक्खू कुम्हार का चाक अब नहीं चलता
और न ही उसका आवाँ सुलगता..
सैरा गाना भी उसने बंद कर दिया है..
दूर-दूर तक कहीं खेत नजर नहीं आते ..
और न ही आम महुए के पेड़...

बदौव्वा बगहा भी अब उजड़ चुका है..
जैसे कभी वहां था ही नहीं..
उस ठूठ हो चुके बड़े बरगद से
वहां बगहा के होने का अनुमान लगता है..

अब कहीं भी गायों का झुंड नहीं दीखता
कोई भी औरत गोबर लीपती नजर नहीं आती..
और न ही,
बिशेशर अब बारिश में अपनी टपकती छत दबाता है..

कोल्ल्हौर तो अब कहीं रहे ही नहीं..
ऊंख का कहीं नाम निशान ही नहीं रहा..
गुड़ की महक अब कहीं से नहीं उठती
और न ही केशन राब का शरबत पीता...

छिटुवा की महतारी अब उसे खेत में खाना देने नहीं जाती..
कल्लू भुन्जवा अब भाड़ नहीं जलाता ...
उसके मकान की जगह सजीवन ने
पान की गुमटी खोल ली है..

शादियों में बाद्द-दार बीन नहीं बजाते
और ना ही निकाशी के समय दूल्हा कल्लू भुन्जवा के भाड़ तक जाता..
बन्ने तो अब गाये ही नहीं जाते..
पालकी भी कहीं नजर नहीं आती..
बारातों में रोशनी के लिए हंडे नहीं जलते..
और ना ही रवाइशों का इस्तेमाल होता..

रामकेश की मेहरिया गाँव की परधान नहीं रही..
बिरजा-दादा की चौपाल में ताश के पत्ते नहीं खेले जाते ..
गंगापारी की आवाज पूरे गाँव में नहीं गूंजती
और ना ही, जैराम अब अपनी एक-नाली बन्दूक साफ़ करता..

पप्पू अब जमनी खाने मर्दनपुर नहीं जाता
और न ही ललुवा भैंस को पानी पिलाने कच्चे ताला आता..
रजुवा अब कहीं दिखाई नहीं देती
रमकन्ना अब उससे चुहल-बाजी करने नहीं आता..
बैजनाथ के दुवारे अब नौटंकी नहीं होती..
और ना ही दंगलवा बगहा में अब दंगल लगता..

बजरंगी मास्टर ने पढाना बंद कर दिया है..
जगदेव मास्टर अब रहा ही नहीं..
सुमन और रेनू अपने घर के पिछवाड़े खड़ी नहीं होतीं
परधान और रेखा अब कोइला में नहीं मिलते ..

पराग लोहार के दुवारे वाले कुएं से जमना पानी लेने नहीं आती..
और ना ही शीला कमलेश से मिलने जाती..
ननकी काकी घर-घर हाल पूछने नहीं आती..
खटमलुवा तो अब कहीं नहीं दिखती..
लालमन कह रहा था की 10 बरस पहले शहर में दिखी थी......

……………………………

अब और नहीं..
बड़े ही सवाल जेहन में उभर कर आ रहे थे ..
चलचित्र की भांति ...
शायद, यादें हसीन ख्वाब बन गयीं हैं..

कुछ भी नहीं रहा अब,
…रघुबर काका की बुझी सी आवाज कानों में पडी..
कौन सा पेज पढ़ रहे हो बच्चा..?..
यह तो पेज नम्बर पांच की चीजे हैं..
पैंतीस में कैसे दिखेंगी....

हंसीन ख्वाब अब जमीन पर आ गए थे..

हाँ काका…
कहाँ गए आखिर ..बीच के.. उनतीस-तीस पेज...

शिवम् - एक भरतनाट्यम प्रस्तुति - गीता चंद्रन



दोस्तों,
कमानी सभागार, कापरनिक्स मार्ग, नई दिल्ली (मण्डी हाउस) में सुश्री गीता चंद्रन और उनकी डांस कंपनी 'नाट्यवृक्ष' की भरतनाट्यम प्रस्तुति आज - 6 मार्च शाम 7 बजे देख सकते हैं॥

Friday, January 02, 2009

नव वर्ष हर्ष नव जीवन उत्कर्ष नव



नव वर्ष
हर्ष नव
जीवन उत्कर्ष नव

नव उमंग
नव तरंग
जीवन का नव प्रसंग

नवल चाह
नवल राह
जीवन का नव प्रवाह

गीत नवल
प्रीति नवल
जीवन की रीति नवल
जीवन की नीति नवल
जीवन की जीत नवल

-हरिवंश राय बच्चन