अराध्य,
मान कर ही तो उन्होने भी
की होगी पूजा उसकी...
शायद,
यह मानकर की थाम लेगा वह,
यह तेज़ बाढ सी
जो पुरातन से चली आ रही है
यहाँ,शोषित होने...
कभी,
खिली तो एक अध-खिली
और,
कभी..भिखारन
तो एक पुजारन बनकर....
वह,
दूर बैठा बस रास रचाता रहा
बासुरी की धुन मे मगन,
गोपियो के इर्द-गिर्द लिपटा...
नहीँ,रोक सका है
वह देवकी नन्दन भी
उन विधवाओ को आने से
वृन्दावन की
इन तंग गलियो मे...
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